#सेवा; स्वयं से बढ़कर...।
दांव पर लिए ज़िंदगी अपनी, जब एक फौजी घर से निकलता है...
देश की सुरक्षा की ख़ातिर, नजाने क्या-क्या कुरबान वह करता है...!
घर-बार से दूर, ऐश व अराम से परे, आख़िर किसलिए...?
बस एक माँ से दूर, एक माँ के लिये...!
दिल में सुलगती आग लिए, आँखो में चमकता जज़्बा...
हर वक़्त सतर्क रेहता है, कहीं दुश्मन कर न ले कब्ज़ा...।
न दुश्मन का भय, न मौत का डर...
बस देश के सेवा में तत्पर खड़ा रेहता है वे निडर...।
जंग के मैदान में साहस से लड़ता है, चाहे मार कर या मर कर...
क्यूंके इसके लिए, सेवा है, स्वयं से बढ़कर...।
लौटूँगा यह कह कर अपनों को देता है वह वचन...
चाहे तिरंगा लहरा कर, या तिरंगे को बना के कफ़न...!
सलाम है ऐसे वीर को, जो सरहद पर वार सहता है...
त्याग के अपने प्राण जो अपने खून से इतिहास रचता है...।
आओ आज इस मौके पर, हम स्मरण करे ऐसे ही जवानो को...
मशाल लिए हाथ में ‘स्वर्णिम विजय’ की,
याद करे उन परवानो को....
याद करे उन परवानो को...!
जय हिंद, जय भारत...
-नूर:)
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